Monday, January 13, 2014

लैटर बॉक्स


नुक्कड़ पर जो लाल सुर्ख इक पोस्ट बॉक्स है 
मैन ईटर है.. 
उसके पेट से लोगों की आवाज़ें आती हैं 
कल ही जब उसके मुंह में इक चिट्ठी डाल रहा था 
उसने मेरे हाथ कि सारी उंगलियां खा लीं 
मैन ईटर है 

गुलज़ार 

Sunday, June 09, 2013

चेंज-यूनिवर्सल लॉ ऑफ़ नेचर

बहुत दिन बाद लिख रहे हैं,कुछ दिन पहले ही फिर से शुरू किया था..
और जो लिखा,उस से ज़िंदगी ने यू-टर्न ले लिया
कुछ ये है वो...

‘एट ए टच ऑफ लव, एवरीवन बिकम्स ए पोएट्’’
- प्लेटो
प्लेटो के कही हुई बात हर ज़माने के प्रेमियों के लिए बिलकुल सटीक है, सभी इससे सरोकार रखते हैं; पर इमरोज कुछ और ही कहते हैं-
"प्यार में
मन कवि हो जाता है
यह कवि
कविता लिखता नहीं
कविता जीता है..."

इस बात से इत्तेफाक़ रखने वालों की संख्या कुछ ज़्यादा नहीं होगी, इसे यूं समझिए,मॉल्स में घूमते किसी भी जोड़े को देख लीजिए, लड़की ने बाएं हाथ से लड़के के हाथ में हाथ डाल रखा है, गोयाकि प्रेम की जंजीर...
दूसरे हाथ को घुमा-घुमा कर, न जाने, मुस्कुराती हुई वो क्या बता रही है, लड़के का दूसरा हाथ अपने आईपॉड के गाने शफल करने में, ईयर प्लग में चलने वाला गीत, उसके साथ चलती ‘कविता’ (इमरोज के शब्दों में) से कहीं नहीं मिलता।
जितनी जल्दी ये किस्से शुरू होते हैं उतनी ही जल्दी खत्म भी हो रहे हैं, प्रेम अधिकार चाहता है, बिहारी कहते हैं प्रेम एकाधिकार चाहता हैः ‘‘बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय’’, प्रेमिका को श्याम के अधरों पर मुरली का होना भी बर्दाष्त भी नहीं है, तो ये तो आज के राधा-श्याम हैं, हाथों में हाथ है, पर नज़र को कौन रोक सकता है, तन पर अधिकार हो सकता है, मन पर तो नहीं, वो तो वहीं भागता है जहां प्रेम है।
लड़कपन में पहले प्यार का स्वाद चखा था, तो यही बैसाख का महीना था, आज भी जब अमराईयों से बौर की महक उठती है, तो उस प्यार की खुषबू दिल को इक अनजानी सी मिठास से भर देती है, ये बेवफाई नहीं है, अहसास है उस रिश्ते का जिसने आपकी ज़िन्दग़ी में एक नया पाठ जोड़ा था... प्यार का।
इमरोज लिखते हैं-
अमृता मुझे कई नामों से बुलाती है/ दोस्ती के ज़माने में/ रेडियो स्टेशन स्कूटर पर जाती/ वह बाएं हाथ से मुझसे लिपटी रहती/ और दाएं हाथ से कभी-कभी/ मेरी पीठ पर कुछ लिखती रहती/ एक दिन पता लगा/ वह साहिर-साहिर लिखती है...
मनचाही पीठ पर मनचाहा नाम
मुझे साहिर भी अपना नाम ही लगा

कितने और होंगे ऐसे, जो साहिर को अपना नाम मान सकें, अमृता-इमरोज, सुधा-चंदर जैसा प्यार कहीं इतिहास की बात न बन जाएं।
कहां है वो चंदर जो कह सके, ‘सुधा, प्रेम इंसान को ऊपर उठाता है, नीचे नहीं गिराता।’
है कहीं वो पागल शायर जो कह सके,
‘खुश रहे या बहुत उदास रहे
ज़िन्दगी, तेरे आस-पास रहे।’

Monday, October 10, 2011

तुमको भूल न पाएंगे हम,ऐसा लगता है.!!

आज सुबह..जैसे ही कंप्यूटर खोला,तो न्यूज़ मिली की जगजीत सिंह नहीं रहे..तब से शॉक में हूँ..
मन सीधे वहां पहुंचा,जहाँ उनसे पहली बार रूबरू हुई थी..9th क्लास में थी मैं..तब से आज तक जगजीत मेरे बहुत करीब रहे...कितने ही सफ़र मैंने अपने फोन के ग़ज़ल फोल्डर को रिपीट पर लगा कर बिताये हैं..जब भी घर पर अकेली रही,दिन भर ग़ज़लें चलती थीं..जगजीत सिंह जी  के बारे में जितना जाना,उतना ही उनकी आवाज़ में डूबती गयी..अभी कुछ दिन पहले उनका एक पुराना इंटरव्यू  पढ़ा था..
"जैसे कभी शिवजी ने गरल पी कर अपने कंठ में रोक लिया था,उसी तरह जगजीत सिंह ने भी अपने जीवन का सारा दुःख,सारा दर्द अपने कंठ में ही रोक लिया है.."
सच..उनकी आवाज़ की गहराई..सीधे दिल को छूती है..
अभी भी,ग़ज़ल फोल्डर में जगजीत गुनगुना रहे हैं..

"जिंदगी..इक सुलगती सी..चिता है..साहिर..
सुलगती सी चिताssss
शोला बनती हैं,न ये बुझ के धुआं होती है.."


जगजीत सिंह जी को श्रद्घांजलि..

Wednesday, September 14, 2011

ख़ाली हैं..

आजकल न जाने क्या हो गया है...लाइफ में कोई रंग ही नहीं रह गया..ब्लैक एंड व्हाइट भी नही..मटमैला सा कोई रंग है..कहीं कुछ नहीं दिख रहा है...रोज़ डेस्कटॉप के themes और वॉलपेपर्स बदलती हूँ..कुछ तो मन बदले,google chrome ने और अच्छा ऑप्शन दे दिया है,लाखों themes का ,पर मन का कोई theme option नहीं है
कभी कभी लगता है,कहीं कुछ नहीं है..सब कुछ वीरान सा है..
ग़ालिब का एक शेर है,सही से याद नहीं आ रहा पर कुछ यूँ है...
"वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देखकर घर याद आ गया... "
पर ये घर की याद तो नहीं है....
कभी कभी,अमूमन हम सभी के साथ होता है कि कुछ रोज़ ऐसे होते हैं जब लगता है किस्मत हमारे साथ नहीं है..पाला बदल कर सामने जा खड़ी हुई है और हमारी हर इक ठोकर और चोट पर हँस रही है...मुझे तो कई बार खिल्ली उड़ाती हुई भी लगी है...
अब तक जब कभी ऐसा हुआ है तब मैं उसकी हँसी कि आवाज़ कि दुगुनी ताक़त से उठ खड़ी हुई..पर न जाने इस बार क्या हुआ है..मैं demotivated feel कर रही हूँ..
कई बार लोगों को कहते सुना है कि 'हमारा समय खराब है या ग्रह ठीक नहीं हैं',मुझे इन सब पर विश्वास नहीं है..सब आप के सोचने का नजरिया है...आप के साथ वही होता है जो आप चाहते हैं...हाँ,कई बातें हमारे बस में नहीं होतीं..पर बेचारे समय या ग्रहों को दोष देना..उनका काम तो बस चलना है...हमें तो उन कि चाल से चाल मिलनी है..
पर आज मेरा भी मन कर रहा है किस्मत और so called बुरे ग्रहों से युद्ध विराम का..




अभी अभी सीढ़ियों से गिरे हैं,चोट कोहनी में लगी है..असर दिमाग पर हो रहा है..!!

Tuesday, July 19, 2011

hapie birthday to Me.. .. :)


1 more year of..mny new experiences..mny new thngs..bt only a lesson....
life z nt wt u think of it,its wt u make of it.... :) :)